Wednesday, 6 December 2017

जब तक "मैं", तब तक हरि नाहि।

मदद करने वाले के पीछे भी वो (ईश्वर) है, और मदद पाने वाले के पीछे भी वो है। मदद करने वाले के मन में जो "मैं" है, और मदद पाने वाले के मन में जो "मैं" है, वह बस अज्ञान है।

ज्ञान "मैं" को हटा देता है और एक दूसरे के पीछे खड़े परमात्मा का साक्षात्कार करा देता है। फिर प्राणी समझ जाता है कि दोनों एक ही है। लेकिन जब तक अज्ञान रहता है प्राणी खुद को ही कर्ता समझता रहता है और मन में अहंकार का पोषण करता रहता है। और एक समय अहंकार इतना शक्तिशाली हो जाता है कि प्राणी "मैं" के अतिरिक्त कुछ सोंच ही नहीं पता है और शरीर के जीवनकाल में सत्य को जानने या सत्य के निकट पहुंचने के रास्ते बंद कर देता है।

सबसे अद्भुत स्थिति तो मुझे उन लोगों की लगती है जो अपने-अपने ईश्वर की सुबह-शाम उपासना करेंगे, उपवास करेंगे, ईश्वर के नाम में भंडारे करेंगे किन्तु इन सभी पुण्य कर्मों से भी अपने अहंकार का पोषण ही करते है। क्योंकि जब तक "मैं" नही जाता ईश्वर को स्थान ही नही होता है। ये श्लोक एक दम सही से इस स्थिति का वर्णन करता है, की
जब मैं था, तब हरि नहीं।
अब हरि हैं मैं नाहि।।
सब अंधियारा मिट गया।
जब दीपक देख्या माहिं।।

अतः हम सभी यदि को "मैं" की दीवार को हटाने के लिए और सत्य रूपी परमात्मा से साक्षात्कार के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।  जहां भी ज्ञान का दीपक दिखाई दे उससे अपने मन के तिमिर को मिटाने का प्रयास करना चहिये।
नमस्कार। कृपया इस पोस्ट को शेयर करें और मेरे और अपने पीछे के परमात्मा से साक्षात्कार में मदद करें।
                                 ।ॐ शांति ॐ।

You suffer more, when you are angry..

What did I learn today, I will tell you in short. I was listening to Sadguru, and he was explaining about the implications of anger.. ...