Monday 2 December 2019

क्यों मुस्कराऊँ????

क्यों मुस्कुराऊँ


अस्तित्व है अराजक
बनती है, रहती है,मिटती है
बिना भाव के।
तुम हिस्से इसके, पर खोजते हो
अपनी चाल
है तुम्हारा अहम शायद कुछ खास।
गर्दन अकड़ जाएगी,
शायद अकड़ हीं गई है!

इसलिए वक़्त की टिक-टिक कहती है:

बेपरवाह जियो और ख़ूब जियो
जिंदगी कमीनी है, 
किसी को नहीं छोड़ती।

इसलिए मुस्कुराओ

सुख की बात है झूठी, 
 है ये सुन्दर असत्य
यहां सुख किसको मिला है?
विष ज्वार में सभी जल रहे
ये विरह सबमें सधा है।

इसलिए मुस्कुराओ

प्रतिदिन कई द्वंद से जंग है
मृगतृष्णा है कि कोई संग है
जीवन कुरूक्षेत्र में रोज़ घाव मिलते हैं
एक भरा नहीं कि दूसरा मिला वहीं।
निश्चित है नतीजा
एक तरफ़ बस्ती है तो दूसरी ओर उजड़ती है।

इसलिए?? मुस्कुराओ!

बड़ा हीं अन्याय हुआ है
मेरे अंदर हीं शत्रु जगा दिया है

पर तुम मुस्कुराओ!

भीतर भी माया
बाहर भी माया

भीतर वृतियों का पसार
बाहर मायावी संसार।

मुस्कुराने की मेरे पास कोई
वजह नहीं है
पर दुःखी हो जाऊं, ये सहज भी
नहीं है।

कुछ भी नहीं है
कोशिश करो फिर भी।

मैं हूँ, बस ये काफ़ी है
इसलिए मुस्कुराऊंगा।

तुम हो, ये काफ़ी है
इसलिए मुस्कुराओ।

अपूर्व.

You suffer more, when you are angry..

What did I learn today, I will tell you in short. I was listening to Sadguru, and he was explaining about the implications of anger.. ...