संसार में शायद कुछ ही लोग होंगे जिन्हें भीड़ से प्रेम होगा। लगभग सभी भीड़ से दूर समय व्यतीत करना चाहते हैं। चाहें कुछ पल ही क्यों न मिलें। जब कोई मानसिक रूप से थकान महसूस करता है तो डॉक्टर भी यही सुझाव देते हैं कि कुछ दिन भीड़ भाड़ से दूर समय ब्यतीय कीजिये।
लेकिन भीड़-भाड़ से दूर जाके हर किसी को आराम नहीं मिल पाता। शांत जगह भी बैठ के मन के भीतर अशांति रहती है। क्या हम इसका कारण जानते हैं?
इसका कारण है हमारे मन के अंदर की भीड़ जो हमारा साथ नहीं छोड़ती।
लेकिन!!! मन के भीतर की भीड़❔❔❔ ये कैसी भीड़ है?
सामान्यतः बाहरी भीड़ में परिचित ब्यक्ति भी होते हैं और अपरिचित ब्यक्ति भी होते है। किंतु मन की भीड़ में वही लोग होते हैं जिनसे हम परिचित होते हैं। वो ब्यक्ति अपने बिचारों से सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो प्रकार से प्रभावित करते हैं। और हमारे निर्णयों तथा हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। हम कई बार खुद को स्वतंत्र करना चाहते हैं किंतु अपने व्यक्तित्व की दुर्बलता के कारण खुद को उनके विचारों से, और इस सोंच से की हमारे कुछ करने से वो क्या सोंचेंगे, से अलग नहीं कर पाते। हम लोग उनके अच्छे या बुरे बिचारों को खुद से चिपका लेते हैं और फिर एकांत जगह मन की शांति की तलाश करते रहते है ठीक वैसे ही जैसे कि कस्तूरी मृग अपने उदर में कस्तूरी लिए कस्तूरी की तलाश में भटकता रहता है। और वो उसे कभी नहीं मिलती।
तो प्रश्न ये उठता है कि समाधान क्या है? कैसे मिले एकांत? कैसे करें इस भीड़ को दूर?
मन की भीड़ से दूर जाने का भी तरीका भी वही है जो बाहर की भीड़ से दूर जाने का है। साधन युक्त व्यक्ति भीड़ को दूर करने के लिए भीड़ से दूर चला जाता है। दुनिया की भीड़ को दूर करने के लिए आपके पास साधन का होना जरूरी है वरना ना चाहते हुए भी आपको रोज बस, मेट्रो में धक्के खाना पड़ता है औऱ ये चलता रहता है क्योंकि आपके पास विकल्प नहीं होता। आपको अपना जीवन चलाने के लिए कार्य करना पड़ता है। साधनवान अपनी साउंडप्रूफ महंगी कार में शीशे चढ़ाता है तथा आफिस में भी एक अकेले के केबिन में बैठता है और समय समय पर छुट्टियां मनाने जाता है। लेकिन मन की भीड़ से शायद वो भी न बच पाता हो। क्योंकि मन की दशा में ये साधन काम नही आते।
मन में एकांत के लिए जो साधन आवश्यक है वो है एक शक्तिशाली व्यक्तित्व। शक्तिशाली व्यक्तित्व के लिए कुछ घटक है जिनके विकाश से व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है।
1. आत्मविश्वास- अपने निर्णय तथा अपनी सोंच पर विश्वास होने पर ही हमारे अंदर आत्मविश्वास का निर्माण होता है। और वो विश्वास हमे तब प्राप्त होता है जब हम ये जानते हैं की हम सही है। हमारी सोंच और हमारा निर्णय सकारत्मक है तथा किसी को नुकसान पहुचने की सोंच से प्रेरित नहीं है। ये हमारे स्वयं के उत्थान के लिए है।
2. समभाव- समभाव से तात्पर्य है कि हम सभी के प्रति समान भाव रखते है। एक ओर जहां हम अपनी स्वतंत्रता तथा अपने मौलिक अधिकारों के प्रति सजग है वही दूसरी ओर हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम दूसरे प्राणियों के मौलिक अधिकारों तथा स्वन्तंत्रता में सेंध नही लगा रहे।
3. समाज के प्रति संतुलित सोंच- किसी ने सच कहा है कि यदि सभी आपसे खुश है तो आप जरूर दुखी ब्यक्ति हैं। इसलिए हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि हम सभी को खुश नहीं रख सकते। लेकिन ये मान लेना भी गलत है कि उपरोक्त कथन का उल्टा , यानी कि सभी को दुखी करने से आप सुखी हो सकते है। समाज में आपके अधिकार भी है और दायित्व भी। इसलिए समाज के प्रति आपकी सोंच का संतुलित होना आवश्यक है।
उपरोक्त घटकों का सही समन्यवय आपके व्यक्तित्व को शक्तिशाली बनाता है तथा आपके मन के भीतर के निरर्थक बिचारों से मुक्ति देता है। आपको ये नहीं सोचना पड़ता कि आपके संबंध में को क्या सोंच रहा है, क्योंकि आप पहले से ही सबका समन्यवय कर चुके होते है और धीरे धीरे आपका ब्यक्तित्व ही उस आधार पे निर्मित हो जाता है।
अंत तक मेरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद। कृपया करके इसे अपने मित्रों के साथ शेयर करे। अपने कीमती comments भी करें। और यदि आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करेंगे तो मुझे अति प्रसन्नता होगी। और आपतो जानते ही हैं कि प्रसन्नता बांटने से प्रसन्नता मिलती है।
नमस्कार।
No comments:
Post a Comment